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रुकावट के लिए खेद नहीं

  • Writer: Suvarup Saha
    Suvarup Saha
  • Jan 16
  • 1 min read

Updated: Apr 25

मुखड़े की दो लाइन से जब नाता जोड़ने वाला था,

अन्तरे कि सिर काटकर अगली रील शुरू वहीं —

इंस्टा–नगर की भागम–भाग में,

झूमर–घूमर में, फ़ुर्सत ही नहीं।

रुकावट के लिए खेद नहीं।


सप्ताहांत की जमा पूंजी से निकाले थे पच्चीस मिनट,

शेल्फ़ की धूल से अगवा कर लाए एक किताब, कविताओं की –

नोटिफिकेशन और ओटीपी की हँसी–ठिठोली में बोला फ़ोन,

रुकावट के लिए खेद नहीं।


गुणा-भाग के पन्ने बिछा के बैठा बालक ख़यालों में

पतंग किसी कहानी की, बिन डोरी की उड़ानों में

क्लास–प्रोजेक्ट, म्यूज़िक–लेसन – बाकी अभी भी, माँ कहीं

रुकावट के लिए खेद नहीं।


बीस साल की यूलिया और साढ़े सात की सुलेमान

एक के कंधे पर है स्टिंगर, दूजा खोजे बचपन यहीं,

कूटनीति के कलाकार सब – रूसी, चीनी, अमरीकी,

बोले नहीं, पर जताए ज़रुर

रुकावट के लिए खेद नहीं।

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